Shodashi - An Overview
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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
The Mahavidya Shodashi Mantra supports emotional balance, promoting therapeutic from previous traumas and interior peace. By chanting this mantra, devotees come across launch from unfavorable thoughts, acquiring a well balanced and resilient frame of mind that assists them experience daily life’s difficulties gracefully.
ध्यानाद्यैरष्टभिश्च प्रशमितकलुषा योगिनः पर्णभक्षाः ।
Worshippers of Shodashi search for not merely materials prosperity but will also spiritual liberation. Her grace is said to bestow both of those worldly pleasures and also the means to transcend them.
केवल आप ही वह महाज्ञानी हैं जो इस सम्बन्ध में मुझे पूर्ण ज्ञान दे सकते है।’ षोडशी महाविद्या
ह्रीं श्रीं क्लीं त्रिपुरामदने सर्वशुभं साधय स्वाहा॥
कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —
वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।
The iconography serves as a focus for meditation and worship, permitting devotees to connect With all the divine energy from the Goddess.
ह्रीङ्काराङ्कित-मन्त्र-राज-निलयं श्रीसर्व-सङ्क्षोभिणी
The name “Tripura” means the three worlds, as well as term “Sundari” indicates quite possibly the most gorgeous girl. The name from the Goddess merely means by far the most stunning lady within the 3 worlds.
The Mahavidya Shodashi Mantra fosters emotional resilience, supporting devotees technique daily life using a calm and regular thoughts. This advantage is efficacious for anyone dealing with stress, because it nurtures internal peace and the check here chance to preserve emotional equilibrium.
वन्दे वाग्देवतां ध्यात्वा देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१॥
॥ अथ त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः ॥